गुरुवार, 12 दिसंबर 2019

आपराधिक न्याय प्रणाली में सुधार की आवश्यकता



“मुझे यह देखकर अत्यंत दुख होता है कि देश की न्यायिक व्यवस्था लगभग ध्वस्त होने की कगार पर है। ये शब्द काफी कठोर हैं, परंतु इन शब्दों में काफी पीड़ा निहित है।”

- मुख्य न्यायाधीश पी एन भगवती (26 नवंबर, 1985)

संदर्भ-

बीते दिनों बलात्कार के चार आरोपियों की मुठभेड़ में हुई मौत ने देश में ‘एक्स्ट्रा जुडिशियल किलिंग’, ‘फेक एनकाउंटर’ और ‘त्वरित न्याय’ जैसे मुद्दों को एक बार पुनः चर्चा के केंद्र में ला खड़ा किया है। इसी बीच उत्तर प्रदेश पुलिस ने भी दावा किया है कि बीते 2 वर्षों में राज्य में हुई कुल 5,178 मुठभेड़ों में 103 अपराधियों की मौत हुई है और लगभग 1,859 घायल हो गए। एक्स्ट्रा जुडिशियल किलिंग की बढ़ती घटनाओं को देखते हुए यह स्पष्ट तौर पर कहा जा सकता है कि देश की आपराधिक न्याय प्रणाली लगभग ध्वस्त होने की कगार पर है और आम आदमी ने इसमें अपना भरोसा खो दिया है। जानकारों का कहना है कि ऐसे समय में आवश्यक है कि सरकार आपराधिक न्याय प्रणाली में यथासंभव सुधार करे ताकि देश की न्यायिक व्यवस्था पर एक बार फिर आम नागरिक का भरोसा कायम हो सके।

आपराधिक न्याय प्रणाली का अर्थ-

आपराधिक न्याय प्रणाली का तात्पर्य सरकार की उन एजेंसियों से है जो कानून लागू करने, आपराधिक मामलों पर निर्णय देने और आपराधिक आचरण में सुधार करने हेतु कार्यरत हैं।
वास्तव में आपराधिक न्याय प्रणाली सामाजिक नियंत्रण का एक साधन होती है, क्योंकि समाज कुछ व्यवहारों को इतना खतरनाक और विनाशकारी मानता है कि वह उन्हें नियंत्रित करने का भरपूर प्रयास करता है।
इस प्रकार की घटनाओं को रोकने, उन्हें नियंत्रित करने और ऐसा करने वालों को दंडित करने का कार्य न्यायिक संस्थानों द्वारा किया जाता है।
आपराधिक न्याय प्रणाली के मूलतः 3 तत्त्व हैं:
कानून प्रवर्तन: कानून प्रवर्तन एजेंसियाँ अपने निर्धारित क्षेत्राधिकार में अपराधों की रिपोर्ट करती हैं और इस संबंध में जाँच करती हैं। साथ ही उनका कार्य सभी आपराधिक साक्ष्यों को एकत्रित करना एवं उनकी रक्षा करना भी होता है। उल्लेखनीय है कि कानून प्रवर्तन एजेंसियों को भारतीय आपराधिक न्याय प्रणाली का एक महत्त्वपूर्ण अंग माना जाता है।
अधिनिर्णयन: अधिनिर्णयन संस्थाएँ आपराधिक न्याय प्रणाली का एक अभिन्न अंग हैं और इन्हें मुख्यतः 3 भागों में विभाजित किया गया है:
न्यायालय: न्यायालय की कार्रवाई न्यायाधीशों द्वारा नियंत्रित की जाती है। इनका मुख्य कार्य यह निर्धारित करना होता है कि किसी आरोपी ने अपराध किया है या नहीं और यदि किया है तो क्या सज़ा दी जानी चाहिये।
अभियोजन: अभियोजनकर्त्ता वे वकील होते हैं जो न्यायालय की संपूर्ण कार्रवाई में राज्य का प्रतिनिधित्व करते हैं। अभियोजनकर्त्ता कानून प्रवर्तन एजेंसियों द्वारा एकत्रित साक्ष्यों की समीक्षा करता है और यह निर्णय लेता है कि क्या केस छोड़ देना चाहिये या मुकदमा दायर किया जाना चाहिये।
बचाव पक्ष का वकील: ये सरकार द्वारा दायर मुकदमे के विरुद्ध न्यायालय में आरोपी का प्रतिनिधित्व करते हैं। अदालत के मुकदमे हेतु बचाव पक्ष इन वकीलों को कुछ पारिश्रमिक पर नियुक्त करता है, परंतु यदि आरोपी इस कार्य हेतु समर्थ नहीं है तो न्यायलय द्वारा भी इसकी नियुक्ति की जाती है।
सुधारगृह या कारावास: इस संस्था का प्रमुख कार्य न्यायालय द्वारा दोषी ठहराए गए अपराधियों की निगरानी करना एवं उन्हें बुनियादी सुविधाएँ प्रदान करना है।
आपराधिक न्याय प्रणाली का उद्देश्य-

आपराधिक घटनाओं को रोकना।
अपराधियों को दंड देना।
अपराधियों के पुनर्वास की व्यवस्था करना।
पीड़ितों को यथासंभव मुआवज़ा देना।
समाज में कानून व्यवस्था बनाए रखना।
आपराधिक न्याय प्रणाली का विकास

भारत में आपराधिक न्याय का एक लंबा इतिहास है। इस संदर्भ में प्राचीन काल में विभिन्न प्रणालियों का विकास हुआ और विभिन्न शासकों द्वारा उन्हें लागू करने का यथासंभव प्रयास किया गया।
विदित है कि भारत में आपराधिक कानूनों का संहिताकरण ब्रिटिश शासन के दौरान किया गया था, जो कमोबेश 21वीं सदी में भी समान ही है।
सर्वप्रथम लॉर्ड वॉरेन हेस्टिंग (1774-85) ने तत्कालीन प्रचलित मुस्लिम आपराधिक न्याय प्रणाली के दोषों और असमानताओं की पहचान की।
हालाँकि इस संदर्भ में सबसे बड़ा परिवर्तन भारतीय दंड संहिता के निर्माण के साथ आया। भारतीय दंड संहिता (IPC) वर्ष 1860 में लॉर्ड थॉमस मैकाले की अध्यक्षता में गठित भारत के पहले विधि आयोग की सिफारिशों के आधार पर निर्मित की गई थी।
इसके अलावा दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) को वर्ष 1973 में अधिनियमित किया गया और 1974 में इसे लागू किया गया।

नागरिकता संशोधन बिल- 2019




🏕 देश भर में हो रहे विरोध प्रदर्शनों के बीच लोकसभा में नागरिकता (संशोधन) विधेयक, 2019 पारित कर दिया गया। विदित हो कि नागरिकता संशोधन विधेयक के माध्यम से नागरिकता अधिनियम, 1955 में संशोधन किया जाएगा। इस विधेयक में बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से आए हुए धार्मिक अल्पसंख्यकों को भारतीय नागरिकता देने का प्रस्ताव किया गया है। ध्यातव्य है कि इससे पूर्व वर्ष 2016 में भी केंद्र सरकार ने नागरिकता (संशोधन) विधेयक सदन के समक्ष प्रस्तुत किया था, हालाँकि लोकसभा से पारित होने के बावजूद भारी विरोध प्रदर्शन के कारण सरकार ने इसे राज्यसभा में प्रस्तुत नहीं किया। वर्तमान विधेयक को लेकर भी देश के कई हिस्सों खासकर पूर्वोत्तर के राज्यों में काफी प्रदर्शन हो रहे हैं। प्रदर्शनकारियों का कहना है कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष राज्य है और धार्मिक आधार पर देश की नागरिकता को परिभाषित करना भारतीय संविधान के प्रावधानों का उल्लंघन है।

क्या कहता है नागरिकता संशोधन विधेयक, 2019?

विधेयक में यह प्रावधान किया गया है कि 31 दिसंबर, 2014 को या उससे पहले भारत में आकर रहने वाले अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान के हिंदुओं, सिखों, बौद्धों, जैनियों, पारसियों और ईसाइयों को अवैध प्रवासी नहीं माना जाएगा।

नागरिकता अधिनियम, 1955 अवैध प्रवासियों को भारतीय नागरिकता प्राप्त करने से प्रतिबंधित करता है। इस अधिनियम के तहत अवैध प्रवासी को ऐसे व्यक्ति के रूप में परिभाषित किया गया है: (1) जिसने वैध पासपोर्ट या यात्रा दस्तावेज़ों के बिना भारत में प्रवेश किया हो, या (2) जो अपने निर्धारित समय-सीमा से अधिक समय तक भारत में रहता है।

विदित हो कि अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से आने वाले धार्मिक अल्पसंख्यकों को उपरोक्त लाभ प्रदान करने के लिये उन्हें विदेशी अधिनियम, 1946 और पासपोर्ट (भारत में प्रवेश) अधिनियम, 1920 के तहत भी छूट प्रदान करनी होगी, क्योंकि वर्ष 1920 का अधिनियम विदेशियों को अपने साथ पासपोर्ट रखने के लिये बाध्य करता है, जबकि 1946 का अधिनियम भारत में विदेशियों के प्रवेश और प्रस्थान को नियंत्रित करता है।

वर्ष 1955 का अधिनियम कुछ शर्तों (Qualification) को पूरा करने वाले व्यक्ति (अवैध प्रवासियों के अतिरिक्त) को नागरिकता प्राप्ति के लिये आवेदन करने की अनुमति प्रदान करता है। अधिनियम के अनुसार, इसके लिये अन्य बातों के अलावा उन्हें आवेदन की तिथि से 12 महीने पहले तक भारत में निवास और 12 महीने से पहले 14 वर्षों में से 11 वर्ष भारत में बिताने की शर्त पूरी करनी पड़ती है।

उल्लेखनीय है कि लोकसभा द्वारा पारित हालिया संशोधन विधेयक अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी तथा ईसाई प्रवासियों के लिये 11 वर्ष की शर्त को घटाकर 5 वर्ष करने का प्रावधान करता है।

विधेयक के अनुसार, नागरिकता प्राप्त करने पर ऐसे व्यक्तियों को भारत में उनके प्रवेश की तारीख से भारत का नागरिक माना जाएगा और अवैध प्रवास या नागरिकता के संबंध में उनके खिलाफ सभी कानूनी कार्यवाहियाँ बंद कर दी जाएंगी।

अवैध प्रवासियों के लिये नागरिकता संबंधी उपरोक्त प्रावधान संविधान की छठी अनुसूची में शामिल असम, मेघालय, मिज़ोरम और त्रिपुरा के आदिवासी क्षेत्रों पर लागू नहीं होंगे।

इसके अलावा ये प्रावधान बंगाल ईस्टर्न फ्रंटियर रेगुलेशन, 1873 के तहत अधिसूचित ‘इनर लाइन’ क्षेत्रों पर भी लागू नहीं होंगे। ज्ञात हो कि इन क्षेत्रों में भारतीयों की यात्राओं को ‘इनर लाइन परमिट’ के माध्यम से विनियमित किया जाता है।

वर्तमान में यह परमिट व्यवस्था अरुणाचल प्रदेश, मिज़ोरम और नगालैंड में लागू है।

नागरिकता अधिनियम, 1955 के अनुसार, केंद्र सरकार किसी भी OCI कार्डधारक के पंजीकरण को निम्नलिखित आधार पर रद्द कर सकती है:

यदि OCI पंजीकरण में कोई धोखाधड़ी सामने आती है।

यदि पंजीकरण के पाँच साल के भीतर OCI कार्डधारक को दो साल या उससे अधिक समय के लिये कारावास की सज़ा सुनाई गई है।

यदि ऐसा करना भारत की संप्रभुता और सुरक्षा के लिये आवश्यक हो।

प्रस्तावित विधेयक में OCI कार्डधारक के पंजीकरण को रद्द करने के लिये एक और आधार जोड़ने की बात की गई है, जिसके तहत यदि OCI कार्डधारक अधिनियम के प्रावधानों या केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचित कोई अन्य कानून का उल्लंघन करता है तो भी केंद्र के पास उस OCI कार्डधारक के पंजीकरण को रद्द करने का अधिकार होगा।

Current affair Hindi 12 December 2019



● जिसे हाल ही में नोबेल शांति पुरस्कार 2019 से पुरस्कृत किया गया है- अबी अहमद अली


• प्रत्येक साल अंतरराष्ट्रीय पर्वत दिवस जिस तारीख को मनाया जाता है-11 दिसंबर

• केंद्र सरकार के अनुसार जिस योजना के तहत अब तक 10 लाख करोड़ रुपये के ऋण दिए जा चुके हैं- प्रधानमंत्री मुद्रा योजना

• SIPRI की रिपोर्ट के मुताबिक भारत के सार्वजनिक क्षेत्र की तीन शीर्ष रक्षा कंपनियों की सामूहिक बिक्री 2018 में 6.9 प्रतिशत घटकर जितने अरब अमेरिकी डॉलर रह गई-5.9 अरब अमेरिकी डॉलर

• जिस देश की तेल उत्पादक कंपनी सऊदी अरामको $1.9 लाख करोड़ मूल्यांकन के साथ विश्व की सबसे मूल्यवान सूचीबद्ध कंपनी बन गई है- सऊदी अरब

• जिसके द्वारा किया गया ट्वीट भारत का ‘गोल्डन ट्वीट ऑफ़ 2019’ कहा गया है- नरेंद्र मोदी

• हाल ही में जारी CCPI 2019 रैंकिंग में भारत को जो स्थान मिला है- नौंवां

• एशियाई विकास बैंक (एडीबी) ने 2019-20 के लिये भारत की आर्थिक वृद्धि दर का अनुमान 6.5 प्रतिशत से घटाकर जितने प्रतिशत कर दिया है-5.1 प्रतिशत

• जिस बॉलीवुड एक्टर को नेशनल एंटी-डोपिंग एजेंसी (NADA) ने अपना ब्रांड एंबेसडर नियुक्त किया है- सुनील शेट्टी

• 13वें एशियाई खेलों में भारत ने जितने पदक जीते हैं-312